नालागढ़ में खनन माफिया बेलगाम: प्रशासन की साख पर गंभीर सवाल, राजनीतिक संरक्षण के आरोप
नालागढ़, 28 जुलाई 2025: हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र नालागढ़ में अवैध खनन एक विकराल रूप ले चुका है, जिससे न केवल पर्यावरण को भारी क्षति पहुँच रही है, बल्कि कानून-व्यवस्था और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। खनन माफिया दिन-रात बेखौफ होकर सरकारी और निजी भूमि पर अवैध रूप से खनन कर रहा है, और उसे रोकने के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। स्थानीय लोगों और कुछ राजनीतिक नेताओं ने इस गोरखधंधे के पीछे राजनीतिक संरक्षण का भी आरोप लगाया है, जिससे यह समस्या और भी जटिल हो गई है।
अवैध खनन का बढ़ता प्रकोप
नालागढ़ उपमंडल में, विशेषकर आदुवाल नदी, महादेव खड्डे और हिमाचल-पंजाब सीमा से सटे इलाकों में, अवैध खनन की गतिविधियाँ चरम पर हैं।[1][2] खनन माफिया जेसीबी और टिप्परों का उपयोग कर दिनदहाड़े खनिज संपदा की लूट कर रहा है।[1] ग्रामीणों का आरोप है कि पिछले काफी समय से यह अवैध कारोबार चल रहा है, जिससे नदियों का रुख बदल रहा है, कृषि भूमि को नुकसान पहुँच रहा है और बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है।[1] कई मामलों में, जब ग्रामीणों ने इसका विरोध किया, तो उन्हें खनन माफिया द्वारा जान से मारने की धमकियाँ भी मिलीं।[2]
प्रशासन की कार्रवाई: नाकाफी या दिखावा?
हालांकि पुलिस और खनन विभाग समय-समय पर कार्रवाई करने का दावा करते हैं, लेकिन ये कार्रवाइयां ऊँट के मुँह में जीरे के समान साबित हो रही हैं। हाल के महीनों में, पुलिस ने कई जेसीबी मशीनें और टिप्पर जब्त किए हैं और माइनिंग एक्ट के तहत मुकदमे भी दर्ज किए हैं।[3][4][5] जुलाई 2025 में एक बड़ी कार्रवाई के तहत 4 जेसीबी और 12 टिप्पर जब्त किए गए।[3][4] इसी तरह, मई 2025 में भी 5 जेसीबी और 15 टिप्पर पकड़े गए थे।[5]
इन कार्रवाइयों के बावजूद, अवैध खनन पर लगाम नहीं लग सकी है। ग्रामीणों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि उनकी शिकायतों पर अक्सर कोई त्वरित कार्रवाई नहीं होती।[1] कई बार तो अधिकारियों के पहुँचने से पहले ही खनन माफिया को सूचना मिल जाती है और वे अपनी मशीनें लेकर भागने में सफल हो जाते हैं।[1][6] इससे प्रशासन और खनन माफिया के बीच मिलीभगत की आशंका को भी बल मिलता है।
राजनीतिक संरक्षण के गंभीर आरोप
इस पूरे प्रकरण में राजनीतिक संरक्षण की भूमिका को लेकर भी गंभीर आरोप लगे हैं। मार्च 2025 में, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने खुले तौर पर एक पूर्व विधायक के बेटों पर अवैध खनन में शामिल होने का आरोप लगाया, जिससे इस मुद्दे ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया।[7] यह आरोप इस धारणा को पुष्ट करते हैं कि खनन माफिया को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है, जिसके कारण प्रशासन भी उनके खिलाफ कठोर कदम उठाने से हिचकिचाता है। ग्रामीणों ने भी कई बार आरोप लगाया है कि प्रभावशाली लोग इस अवैध कारोबार के पीछे हैं।
प्रशासन की साख दाँव पर
जिस तरह से खनन माफिया बिना किसी डर के अपने काम को अंजाम दे रहा है, उससे नालागढ़ प्रशासन की साख दाँव पर लग गई है।[1][2] ग्रामीणों के विरोध प्रदर्शन और अधिकारियों के घेराव की घटनाएँ आम हो चली हैं।[8] लोगों का विश्वास डगमगा रहा है और वे यह सवाल उठा रहे हैं कि आखिर किसके दबाव में प्रशासन इस अवैध गतिविधि को रोकने में पूरी तरह से विफल हो रहा है। खनन विभाग के अधिकारियों ने भी माना है कि स्थानीय लोगों की संलिप्तता और उनके मुखबिर तंत्र के कारण कार्रवाई करना मुश्किल हो जाता है।[1]
कुल मिलाकर, नालागढ़ में अवैध खनन सिर्फ एक पर्यावरणीय या कानूनी समस्या नहीं रह गई है, बल्कि यह एक ऐसा नासूर बन गया है जो प्रशासन की क्षमता, निष्पक्षता और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। जब तक राजनीतिक संरक्षण के आरोपों की निष्पक्ष जाँच नहीं होती और प्रशासन एक निर्णायक और सतत अभियान नहीं छेड़ता, तब तक इस क्षेत्र में खनन माफिया का बेलगाम राज जारी रहने की आशंका है।
